
मुख्य बातें
सबसे कम लागत (Lowest Cost): कोटक म्यूचुअल फंड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक वाट (Watt) का डेटा सेंटर बनाने की लागत सिर्फ़ $7 प्रति वाट है, जो चीन ($6) को छोड़कर अन्य प्रमुख देशों से काफ़ी कम है।
वैश्विक तुलना (Global Comparison)
भारत: $7
ब्रिटेन (UK): लगभग $11
अमेरिका (USA), दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया: लगभग $10
जापान: लगभग $14
तेज़ विकास (Rapid Growth)
2019 में भारत में केवल 5 ‘हाइपरस्केल डेटा सेंटर’ थे, जिनकी संख्या 2024 तक बढ़कर 15 हो गई है। यह वृद्धि इंटरनेट, ऐप्स और डिजिटल पेमेंट के बढ़ते उपयोग के कारण डेटा स्टोरेज की बढ़ती मांग को दर्शाती है।
सरकारी सहायता (Government Support)
राज्य सरकारें निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई रियायतें (concessions) दे रही हैं, जैसे:
- तमिलनाडु में बिजली पर 100% सब्सिडी।
- उत्तर प्रदेश में ओपन एक्सेस बिजली और ट्रांसमिशन शुल्क पर पूरी छूट।
- महाराष्ट्र में बिजली पर आजीवन छूट और सब्सिडी।
कानूनी बढ़ावा (Regulatory Boost)
सरकार के बनाए कुछ क़ानून भी भारत में डेटा सेंटर को बढ़ावा दे रहे हैं:
- RBI (2018) और SEBI (2023): इन्होंने पेमेंट और वित्तीय कंपनियों के लिए भारतीय डेटा को देश के भीतर ही स्टोर करना अनिवार्य कर दिया है।
- DPDP एक्ट 2023: यह सरकार को ज़रूरत पड़ने पर डेटा को देश से बाहर भेजने से रोकने की शक्ति देता है।
भविष्य की क्षमता (Future Potential)
वर्तमान में, दुनिया के कुल डेटा सेंटरों में से केवल 3% ही भारत में हैं, जबकि भारत वैश्विक डेटा खपत में 20% से ज़्यादा की हिस्सेदारी रखता है। कम लागत, सरकारी समर्थन और सख्त कानूनों के कारण यह अंतर जल्द ही कम हो सकता है, जिससे भारत दुनिया का अगला ‘डेटा हब’ बन जाएगा।
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